हनुमान जयंती - जब भी मिले कोई बड़ी सफलता तो कुछ देर के लिए मौन हो जाना चाहिए

अप्रैल को चैत्र मास की पूर्णिमा है, इसी दिन हनुमानजी की जयंती भी मनाई जाएगी। हनुमानजी से जुड़े कई ऐसे प्रसंग है, जिनमें जीवन प्रबंधन के सूत्र बताए गए हैं। इन सूत्रों को जीवन में उतार लेने से कई बड़ी परेशानियां दूर हो सकती हैं और सुख-शांति मिल सकती है। यहां जानिए रामायण का एक ऐसा प्रसंग, जिसमें बताया गया है कि जब हमें सफलता मिलती है तो हमें क्या करना चाहिए...


रामायण के सुंदरकांड में हनुमानजी ने हमें बताया है कि सफल होने पर थोड़ा खामोश हो जाना चाहिए। हमारी सफलता की कहानी कोई दूसरा बयान करे तो मान-सम्मान में बढ़ोतरी होती है।


जामवंत ने सुनाई हनुमानजी की सफलता की गाथा


लंका जलाकर और सीताजी को संदेश देने के बाद उनका रामजी की ओर लौटना सफलता की चरम सीमा थी। वह चाहते तो अपने इस काम को स्वयं श्रीरामजी के सामने बयान कर सकते थे।


जैसा हम लोगों के साथ होता है, हम लोग अपनी सफलता की कहानी स्वयं दूसरों को न सुनाएं, तो कइयों का तो पेट दुखने लगता है, लेकिन हनुमानजी जो करके आए, उसकी गाथा श्रीराम को जामवंत ने सुनाई।


श्रीरामचरित मानस में लिखा है कि-


नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी। सहसहुं मुख न जाइ सो बरनी।।


पवनतनयके चरित्र सुहाए। जामवंत रघुपतिहि सुनाए।।


जामवंत श्रीराम से कहते हैं कि- हे नाथ! पवनपुत्र हनुमान ने जो करनी की, उसका हजार मुखों से भी वर्णन नहीं किया जा सकता। तब जामवंत ने हनुमानजी के सुंदर चरित्र (कार्य) श्रीरघुनाथजी को सुनाए।।


सुनतकृपानिधि मन अति भाए। पुनि हनुमान हरषि हियं लाए।।


सफलता की कथा सुनने के बाद श्रीरामचंद्र के मन को हनुमानजी बहुत ही अच्छे लगे। उन्होंने हर्षित होकर हनुमानजी को फिर हृदय से लगा लिया। परमात्मा के हृदय में स्थान मिल जाना अपने प्रयासों का सबसे बड़ा पुरस्कार है।


प्रसंग की सीख


इस प्रसंग की सीख यह है कि हमें सफलता मिलने के बाद कुछ देर के लिए मौन हो जाना चाहिए। हमारी उपलब्धि के बारे में कोई दूसरा बताता है तो मान-सम्मान में बढ़ोतरी होती है और हमारी सफलता का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।